Saturday, November 24, 2012

कैक्टस के फूल

नहीं सोचा था कभी 
आँगन की हरी भरी बगिया में 
छा जायेगा मरुथल 
और उग आयेंगे कैक्टस। 

बगिया की सोच 
शायद होगी सही, 
नहीं रही होगी आशा 
पानी देने और 
देखभाल करने की
इन कमजोर 
और कांपते हाथों से,
और सौंप दिया आँगन 
मरुथल के हाथों में 
जहां उगते सिर्फ कैक्टस 
जिन्हें नहीं ज़रूरत 
किसी देखभाल की। 

आज देखा आँगन में 
कैक्टस पर खिला 
एक सुंदर फूल, 
छूने को बढ़ी उंगलियों में 
चुभ गया 
कैक्टस का काँटा 
पर नहीं हुआ दर्द,
आदत हो गयी थी 
उंगलियों को
काँटों से बिंधने की 
गुलाबों को छूने पर।

कैलाश शर्मा 

51 comments:



  1. बेहद गहन भाव पिरोये सशक्त अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकारें

    बगिया की सोच
    शायद होगी सही,
    नहीं रही होगी आशा
    पानी देने और
    देखभाल करने की
    इन कमजोर
    और कांपते हाथों से,
    और सौंप दिया आँगन
    मरुथल के हाथों में
    जहां उगते सिर्फ कैक्टस
    जिन्हें नहीं ज़रूरत
    किसी देखभाल की।

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  2. आदत हो गयी थी
    उंगलियों को
    काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर।
    वाह ... बहुत ही बढिया।

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    1. bahut bdhiya bhav hai aur umda soch , sach me cactus ko jaroorat nahi kisi ki , phir bhi phool khilate hai , kanta chubha jo ungli me aadat batate hai

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  3. बहुत बढ़िया भाव आदरणीय ।।

    बधाईयाँ ।।

    काँटा ने हरदम दिया, उस गुलाब का साथ ।

    चाह गुलाबों की किया, जरा बढाया हाथ ।

    जरा बढाया हाथ, चुभन को सहता रहता ।

    पोछूं आंसू खून, नहीं दिल कुछ भी कहता ।

    धरा धरे मरू रूप, कैक्टस से क्या घाटा ।

    उगे फूल पर कर्म, नहीं भूले वह काँटा ।।

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    1. बहुत सुंदर...आभार रविकर जी...

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  4. बहुत बढ़िया सर!


    सादर

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  5. उम्र के इस दौर में
    भले ही उगा लिए हों कैक्टस
    यह सोच कर कि
    नहीं ज़रूरत होगी
    देख भाल की
    लेकिन यही वो वक़्त है
    जब सबसे ज्यादा ज़रूरत है
    नेह प्यार की ।

    बहुत सुंदर बिम्ब और उतनी ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  6. चुभ गया
    कैक्टस का काँटा
    पर नहीं हुआ दर्द,
    आदत हो गयी थी
    उंगलियों को
    काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर।
    भावों को बहुत ख़ूबसूरती से शब्दों का जामा पहनाया है आपने बहुत खूब

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  7. काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर।
    वाह ... बहुत ही बढिया
    हम सबके साथ साझा करने के लिए आपका शुक्रिया

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  8. बहुत गहन भाव पूर्ण रचना है कैलाश जी |

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  9. गहन अर्थ और भाव लिए बहुत ही बढ़ियाँ रचना..
    :-)

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  10. बढ़िया बिम्ब कैक्टस का संजोया पिरोया है रचना में .बधाई .

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  11. आज देखा आँगन में
    कैक्टस पर खिला
    एक सुंदर फूल,
    छूने को बढ़ी उंगलियों में
    चुभ गया
    कैक्टस का काँटा
    पर नहीं हुआ दर्द,

    बहुत भावपूर्ण उत्कृष्ट रचना,,,,

    recent post : प्यार न भूले,,,

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  12. Behad sundar! Jab jeewan ka paryawaran tabah hoga to phoolon ke badle kaante ugenge hee!

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  13. नहीं सोचा था कभी
    आँगन की हरी भरी बगिया में
    छा जायेगा मरुथल
    और उग आयेंगे कैक्टस।
    बहुत ही सुन्दर लगी यह कविता |आभार सर

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  14. आदत हो गयी थी
    उंगलियों को
    काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर।

    संवेदनाओं की उच्च सीमा को स्पर्श करती कविता।

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  15. बहुत बढ़िया .....
    सुन्दर रचना.

    सादर
    अनु

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  16. आज देखा आँगन में
    कैक्टस पर खिला
    एक सुंदर फूल,
    छूने को बढ़ी उंगलियों में
    चुभ गया
    कैक्टस का काँटा
    पर नहीं हुआ दर्द,
    आदत हो गयी थी
    उंगलियों को
    काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर।


    मालूम हुआ बिना एहसास के मैं ज़िंदा हूँ इसलिए कि जब कभी एहसास लौटें खैरमकदम कर सकूं .बढ़िया

    रचना है सर जी .

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  17. बहुत सुन्दर रचना.


    सादर.

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  18. उम्र के इस पडाव पर कांटे सहने की आदत हो जाती है उंगलियों को और मन को भी ।

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  19. बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचना ।

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  20. दिल को छूने वाला लेख।सर अब तो हर आँगन में कैक्टस उगे हैं, और इनके फूल और काँटे की सबको आदत हो गयी है.
    सादर-

    मेरी नयी पोस्ट - विचार बनायें जीवन.....

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  21. बहुत खूबसूरत रचना

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  22. कल 26/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  23. गहन अभिव्यक्ति...उँगलियों को आदत हो जाती है चुभन सहने की!!

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  24. छूने को बढ़ी उंगलियों में
    चुभ गया
    कैक्टस का काँटा
    पर नहीं हुआ दर्द,
    आदत हो गयी थी
    उंगलियों को
    काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर।

    गहन रचना

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  25. उंगलियों को क्या ...दिल को भी आदत हो जाती है !दर्द सहने की !
    एहसासों से गुंथी रचना !
    शुभकामनायें!

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  26. बहुत खूबसूरत ,लाजवाब रचना।

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  27. वाह कैलाश जी ...आपकी इस रचना में बहुत रहस्य छिपा है ..
    आँगन में हरी दूब का केक्टस में बदलना ...कमजोर बाँहों की बेबसी ...मुलायम हरी घास की नर्माहट और काँटों की चुभन.... बहुत खूब

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  28. बेहतरीन कविता.

    सादर,
    निहार

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  29. बहुत उम्‍दा रचना

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  30. आदत हो गयी थी
    उंगलियों को
    काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर।
    ...वाकई .....अपनों के दिए दर्द का कोई पारावार नहीं .....

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  31. bhavpurn rachna...har shabd man may gehre utarti

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  32. अद्भुत व् सुंदर जीवन दर्शन
    सादर वन्दे सर !

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  33. काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर।
    gahan bhav se sanjoyee khoobsurat rachna..

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  34. आदत हो गयी थी
    उंगलियों को
    काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर।

    बहुत सुन्दर

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  35. Bahut khoob,sir.Dil ko chhoo gai.

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  36. आदत हो गयी थी
    उंगलियों को
    काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर।
    कैक्टस हो या गुलाब ....कांटा तो आवश्यम्भावी है ........बहुत सही ...!!
    सुंदर अभिव्यक्ति ...शुभकामनायें ...!!

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  37. वाह खूबसूरत भाव .......सादर

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  38. खूबसूरत भाव व्यक्त हुए हैं ....ध्यान/केयर टेक /सजगता न रखने पर कैक्टस या इस तरह के घास फूस उग ही जाते हैं |बहुत खूबसूरत ढंग से शब्दों को पिरोया गया हैं ...बधाई http://drakyadav.blogspot.in/

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  39. आदत हो गयी थी
    उंगलियों को
    काँटों से बिंधने की
    गुलाबों को छूने पर..
    superb expressions.. how we get accustomed to suffering !!

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  40. अति सुन्दर बिम्ब विधान .बढ़िया रचना .गुलाब को छूने कांटो से बिंधने की आदत हो गई है ,यही है विधना

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  41. मधुर बिम्ब संयोजन ...
    काँटों की आदत हो जाए तो दर्द नहीं रहता ... हर सच को झेला जाता है ...
    बहुत खूब ...

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  42. सुंदर प्रसतुति है आपकी !! कैक्टस के फूल वाकई में जीवन की राहों में फूलों के साथ साथ कांटो का प्रेम भी झेलना पड़ता है.

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