Tuesday, August 30, 2011

आसमान की चाहत

आसमान छूने की चाहत में
कितने दूर हो जाते हैं 
हम ज़मीन से.

रिश्तों की दीवारें
ढह जाती हैं
स्वार्थों की चोट से,
चढ़ जाती है 
स्नेह पर
गुरुत्व की परत,
चलते हैं
गढा कर नज़रें
आसमां पर
और कुचलते 
स्वप्न और अरमान 
अपनों के,
पैरों तले.

लेकिन पाते हैं एक दिन 
अपने आप को अकेला
दूर क्षितिज पर,
तरसते 
एक कोमल नन्हे हाथ को
जो पोंछ दे आंसू
अकेलेपन के.

Sunday, August 28, 2011

जनता की आवाज़



संसद तक है गूँज उठी, आवाज़ ये देखो जन जन की,

नहीं अनसुनी कर पायी, हुंकार ये सत्ता जन जन की.

आज अहिंसा की ताकत से हिंसा भी है सहम गयी,

सत्ता से मगरूर गये पहचान हैं ताकत जन जन की.

Thursday, August 25, 2011

मैं भी अन्ना, तुम भी अन्ना

बेहतर होगा
पहनना काले कपडे 
नेताओं को,
छुपे रहेंगे दाग
उसमें आसानी से.


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भ्रष्टाचार बसा है जिनकी नस नस में,
दूर करेंगे वह इसको, यह आस व्यर्थ है.
कौन बनाता फांसी फंदा अपने हाथों से, 
बनें भेड़िया शाकाहारी,यह आस व्यर्थ है.

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जन जन की आवाज़ न खाली जायेगी,
निकल चुकी शमशीर न वापिस जायेगी.
मत भूलो की तुम जनता के सेवक हो,
सत्ता गरूर को जनता धूल चटायेगी.

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मैं भी अन्ना, तुम भी अन्ना,
नहीं सिर्फ़ एक नाम है अन्ना.
हर आँखों के सपने हैं अन्ना,
जन जन की आवाज़ है अन्ना.
          

Thursday, August 18, 2011

तड़प रहा गांधी का अंतस

तड़प रहा गांधी का अंतस,
आज देश का हाल देखकर.
क्या मेरी वह राह गलत थी,
पायी थी आजादी चलकर?

रोक लगी क्यों सत्याग्रह पर,
अनशन हुआ गैर कानूनी?
भ्रष्ट लोग गद्दी पर जब हों,
न्याय, सत्य होते बेमानी.

नहीं किया संघर्ष था मैंने,
ऐसी  आज़ादी  पाने को.
अपना स्वार्थ हुआ सर्वोपरि,
भूल गए हैं जन सेवा को.

गर्व मुझे कुछ जन अब भी,
चलते  हैं मेरे  रस्ते पर.
जो बनते हैं मेरे वारिस,
भूल गये मेरी शिक्षा पर.

अब मेरी तस्वीर हटा दो,
दफ़्तर की दीवारों से तुम.
झुक जाती हैं मेरी नज़रें,
काले कार्य देखकर हरदम.

Sunday, August 14, 2011

ढूँढ रहा हूँ आज़ादी को

ढूँढ रहा हूँ आजादी को, नज़र उठा कर चारों ओर,
कहते सब आज़ाद देश है, ढूँढ रहा मैं उसका छोर.

भूखा मरने की आज़ादी, रोक मगर हक़ को अनशन पर,
जीवन भर था रहा नग्न, अब कफ़न चुराने बैठे चोर.

मेहनतकश इंसान लटकता, हर पल फांसी के फंदे पर,
इंतज़ार में भ्रष्टाचारी, कब खींचूँ में इसकी डोर.

रोटी, घर, शिक्षा के सपने, क़ैद दफ्तरों की फ़ाइल में,
कितनी बार आयेगा गांधी, खोल सके जो उसकी डोर.

सहने की भी एक सीमा है , मत मज़बूर करो जनता को,
जब आवाज़ उठेगी उसकी, सह न पाओगे वह शोर.

स्विस बैंकों में क़ैद करो मत, तुम भारत माता की अस्मत,
उठ जायेगा एक सुनामी, भीगा गर माँ आँखों का कोर.


स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

Thursday, August 11, 2011

सपने बन्द आँखों के

नहीं अच्छे लगते
सपने बन्द आँखों के,
नहीं होता है नियंत्रण
इनके आने पर
या टूट जाने पर.


खुली आँखों के सपने 
रहते हैं अपनी मुट्ठी में,
जब चाहो
जिधर चाहो
मोड़ दो रुख
परिस्थितियों के अनुसार.
और रख सकते हो
उनको अपनी सीमाओं में,


नहीं होता है डर
उनके टूट जाने का.